नहीं रहे वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध के महावीर चंदन सिंह, लॉक डाउन के कारण आमजन नहीं दे पाएंगे अपने वार हीरो को अंतिम विदाई

वर्ष 1962 भारत-चीन व वर्ष 1971 भारत-पाक युद्ध के दौरान अपनी अदम्य बहादुरी के दम पर पहले वीर और बाद में महावीर चक्र हासिल करने वाले एयरवाइस मार्शल(रिटायर्ड) चंदन सिंह बागावास का रविवार दोपहर जोधपुर में निधन हो गया। वे 97 साल के थे। लॉक डाउन के कारण देश के इस महावीर की अंतिम संस्कार से जुड़े आयोजनों को सिर्फ परिवार तक ही सीमित कर दिया गया है। ऐसे में शहर के लोग अपने वार हीरो को अंतिम विदाई नहीं दे पाएंगे। उनका अंतिम संस्कार आज शाम पांच बजे बीजेएस स्वर्गाश्रम में होगा और सिर्फ बागावास परिवार के सदस्य ही इसमें शामिल होंगे। 


एयरवाइस मार्शल सिंह इकलौते ऐसे ऑफिसर रहे जिन्होंने अपनी शुरुआत थल सेना से की और बाद में वे एयर फोर्स में शामिल हुए। वर्ष 1941 में सिंह लेफ्टिनेंट के रूप में जोधपुर लांसर से अपनी सैन्य जीवन शुरू किया। उनके पिता कर्नल बहादुर सिंह लांसर के कमांडेंट थे। आजादी से एक साल पहले जोधपुर लांसर को भारतीय सेना में मिला दिया गया। वर्ष 1947 में कैप्टन सिंह ने एयरफोर्स में जाने का फैसला किया और एयर वॉरियर बन गए। उन्होंने वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध व वर्ष 1971 के भारत-पाक युद्ध में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इस कारण उन्हें वीर चक्र व महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। वर्ष 1980 में वे एयरफोर्स से रिटायर्ड हुए। 


ऐसे मिला वीर चक्र


20 अक्टूबर 1962 को तत्कालीन स्क्वाड्रन लीडर चंदन सिंह अपने हैलिकॉप्टर से लद्दाख क्षेत्र में अग्रिम मोर्चे पर युद्द लड़ रहे भारतीय सैनिकों के लिए रसद व हथियार लेकर पहुंचे। भीषण गोलीबारी के बीच उन्होंने अपना कर्तव्य पूरा किया। इस दौरान उनके हैलिकॉप्टर पर चीन के सैनिकों ने 19 गोलियां दागी। इसके बावजूद उन्होंने लगातार फेरे लगा अग्रिम मोर्चे पर रसद व हथियार पहुंचाना जारी रखा। युद्ध के पश्चात उनकी इस बहादुरी के लिए वीर चक्र प्रदान किय गया।


वर्ष 1971 में इस कारण कहलाए महावीर


वर्ष 1971 के युद्ध में वे पूर्वी सीमा के महत्वपूर्ण एयरबेस जोराहट के कमांडिंग ऑफिसर थे। भारतीय सेना को ढाका की तरफ बढ़ने में बहुत दिक्कते आ रही थी। ऐसे में ग्रुप कैप्टन चंदन सिंह ने पहले करते हुए हैलिकाप्टरों की मदद से लगातार फेरे लगाकर हथियार व सेना की दो कंपनियों को एक रात में मेघना नदी के पार उतार दिया। इस दौरान 3000 हजार जवान व 40 टन गोला बारूद अग्रिम मोर्चे पर एक ही रात में ले जाया गया। इस दौरान पाकिस्तानी सैनिक लगातार गलीबारी कर रहे थे। उनके हैलिकॉप्टर में गोलियों से कई छेद हो गए। इसके बावजूद उन्होंने अभियान को रोका नहीं। एक ही रात में उन्होंने करीब 26 फेरे लगाए। यहीं कारण था कि इन 3000 सैनिकों ने ढाका को घेर लिया। जिसके बाद में पाकिस्तानी सेना को आत्मसमर्पण करना पड़ा। उनकी इस बहादुरी के लिए युद्द के पश्चात उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।